हरेला पर्व: उत्तराखंड की हरियाली और संस्कृति का अनूठा संगम
मुख्य बिंदु: हरेला उत्तराखंड का प्रमुख कृषि पर्व है जो साल में तीन बार मनाया जाता है। श्रावण मास में मनाया जाने वाला हरेला सबसे महत्वपूर्ण होता है जो मानसून और नई फसल के आगमन का प्रतीक है।
हरेला क्या है?
हरेला, उत्तराखंड का प्रमुख कृषि और प्रकृति पर्व है, जो साल में तीन बार मनाया जाता है:
- चैत्र हरेला (मार्च-अप्रैल)
- श्रावण हरेला (जुलाई-अगस्त)
- आश्विन हरेला (सितंबर-अक्टूबर)
श्रावण हरेला सबसे धूमधाम से मनाया जाता है क्योंकि यह मानसून की शुरुआत और नई फसल का प्रतीक है।
हरेला का पौराणिक महत्व
- भगवान शिव-पार्वती के विवाह से जुड़ा लोकविश्वास
- नाग देवता की पूजा की परंपरा
- कुमाऊँ के राजाओं द्वारा इसे राजकीय पर्व के रूप में मनाया जाना
"हरेला पर्व हमें प्रकृति से प्रेम, सामूहिकता और कृषि परंपरा की अहमियत सिखाता है।"
हरेला कैसे मनाते हैं?
1. बीजारोपण
गेहूं, जौ, मक्का, सरसों जैसे बीज बोए जाते हैं और दस दिनों में उग आते हैं।
2. पूजा और आशीर्वाद
हरेले को काटकर देवी-देवताओं को अर्पित किया जाता है और घर के सदस्यों को आशीर्वाद दिया जाता है:
"जी रये, जागि रये, धरती जस फल फूल, है जये!"
3. सामाजिक आयोजन
झोड़ा, चांचरी, हरेला मेला और पारंपरिक गीतों से पर्व को जीवंत किया जाता है।
वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण
- मिट्टी की उर्वरता की जाँच
- बीज संरक्षण और जैव विविधता
- मानसून और जल संरक्षण का संदेश
आधुनिक दौर में हरेला
- शैक्षणिक संस्थानों में हरेला दिवस
- सरकारी पौधारोपण अभियान
- #HarelaFestival जैसे सोशल मीडिया अभियान
निष्कर्ष
हरेला उत्तराखंड की आत्मा है — एक ऐसा पर्व जो प्रकृति, संस्कृति और वैज्ञानिक चेतना को एक साथ पिरोता है।
"हरेला सिर्फ त्योहार नहीं, प्रकृति से जुड़ने का माध्यम है।"