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गूगल मैप्स पर नहीं दिखते ये शिव मंदिर, फिर भी शिवरात्रि रात यहाँ पहाड़ भी झूम उठते हैं

कुमाऊं-गढ़वाल के छिपे हुए शिव मंदिरों में शिवरात्रि

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कुमाऊं-गढ़वाल के छिपे हुए शिव मंदिरों में शिवरात्रि

17 जुलाई 2025 • Pramod Bhatt

जब फागुन की रात पहाड़ों पर ठंडी हवा चलती है और देवदार के पत्तों से टकराकर एक अलौकिक संगीत बनता है, तब कुमाऊं-गढ़वाल के कुछ ऐसे शिव मंदिर जगमगाते हैं जो गूगल मैप्स पर शायद ही दिखें। मैंने इन छिपे हुए शिवालयों में शिवरात्रि मनाई—औकात से बड़ा अनुभव था।

1. बागेश्वर ज़िले का ‘सुनहला देवल’

सुनहला देवल, काठ-काठ की लकड़ी से बना १२वीं सदी का मंदिर, जहाँ शिवलिंग पर पिघला हुआ घी चढ़ाया जाता है। रात १२ बजे जब १०८ दीप जलते हैं, तो पूरा गाँव झूम उठता है।

“यहाँ शिवरात्रि सिर्फ़ पूजा नहीं, पूरे गाँव का संगीत महोत्सव है।”—स्थानीय पंडित हरीश भट्ट

2. चमोली की ‘ज्योलिंकोण’ गुफा

४ किमी पैदल चढ़ाई के बाद मिलती है यह प्राकृतिक गुफा। शिवरात्रि पर यहाँ ‘रुद्र अभिषेक’ के दौरान बर्फ़ीले पानी से भी भक्त ठंड नहीं मानते।

3. पिथौरागढ़ का ‘नागेश्वर धाम’

१८०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह धाम, जहाँ शिवलिंग के ऊपर एक प्राकृतिक नाग-फनाकार चट्टान है। रात में ‘नाग-नृत्य’ की परंपरा देखने लायक है।

अनुभव के लम्हे

  • अखंड ज्योति जलती रहती है १३ दिन तक।
  • स्थानीय महिलाएँ ‘जागर’ गाती हैं—पहाड़ी लोक-कथाएँ।
  • मंदिर के बाहर ‘भांग’ की छाछ मिलती है, पहाड़ी अंदाज़ में प्रसाद।

कैसे पहुँचें?

दिल्ली से हल्द्वानी/ऋषिकेश बस → स्थानीय जीप या ट्रैक। शिवरात्रि से २ दिन पहले ही पहुँचें; होम-स्टे बुक कराना ज़रूरी।

निष्कर्ष: भीतर तक झकझोर देने वाली यात्रा

इन मंदिरों में शिवरात्रि सिर्फ़ धार्मिक उत्सव नहीं, एक जीवंत संस्कृति है जो आपके भीतर की तरंगों को भी थिरका देती है। अगली बार जब भी फागुन की रात हो, पहाड़ों की ये गूंज ज़रूर सुनें।

Tags: Shivratri, Uttarakhand, Kumaon, Garhwal, Hidden Temples, Spiritual Travel, From the Hills
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