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छिपलाकोट से गोर्खा किलों तक: उत्तराखंड के भूले-बिसरे गढ़ों की असली गाथा

हिमालय की कहानियाँ: छिपलाकोट से लेकर गोर्खा किले तक

🏔️ हिमालय की कहानियाँ: छिपलाकोट से लेकर गोर्खा किले तक

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“हर पहाड़ में एक कथा है, हर गढ़ में एक इतिहास।”
इसी मान्यता के आधार पर चलिए छिपलाकोट, सेराकोट, अस्कोट और सोरपट्टी की ऐतिहासिक यात्रा पर।

1️⃣ छिपलाकोट – धार्मिक गढ़ या राजशाही का प्रमाण?

उत्तराखंड की इस ऊँचाई वाली पहाड़ी पर 'छिपला केदार' नामक लोकदेवता का निवास माना जाता है। इसके शीर्ष पर प्राचीन किले जैसे अवशेष पाए जाते हैं, परंतु किसी राजा का स्पष्ट ऐतिहासिक उल्लेख नहीं है। यह एक देव‑कोट (धार्मिक गढ़) के रूप में अधिक प्रसिद्ध है।

2️⃣ सेराकोट – देवता और राजा का संगम

डीडीहाट के समीप स्थित यह स्थल पूर्व में Malla / Raika वंश के अधीन था। बाद में यह Chand वंश के प्रभाव में आया और यहाँ मलैनाथ मंदिर एवं शिवरात्रि मेले का धार्मिक महत्व स्थापित हुआ। यह एक स्थानीय धार्मिक‑राजनीतिक केंद्र था जहाँ शासक धार्मिक आयोजनों से जनमान्यता प्राप्त करते थे।

3️⃣ अस्कोट – पाल राजवंश और 'अस्सी कोट' की परंपरा

1279 ई. में अभय पाल देव ने कत्युरी वंश की शाखा से Askot की नींव रखी। लोककथाओं के अनुसार, उनके शासन के अंतर्गत लगभग 80 छोटे-छोटे किले (Assi Kot) सक्रिय थे। इनमें से केवल लखनपुर कोट का अस्तित्व आज भी प्रमाणित है। यह राजवंश 1815–16 तक सक्रिय रहा जब गोरखा और फिर ब्रिटिश शासन प्रभाव में आए।

4️⃣ Pal ≠ Rawat: नामों का भ्रम

अस्कोट के शासक ‘पाल’ वंश से संबंधित थे। ‘रावत’ एक सम्मानसूचक उपनाम है, जो व्यापक रूप से राजपूत समाज में प्रयुक्त होता रहा है। इसलिए Pal और Rawat को एक समझना ऐतिहासिक रूप से अनुचित है।

5️⃣ छिपलाकोट पर किसका प्रभुत्व था?

Askot और छिपलाकोट की भौगोलिक निकटता और ‘अस्सी कोट’ नेटवर्क के संकेत इस ओर इशारा करते हैं कि छिपलाकोट पर Askot का प्रभुत्व अधिक था। सेराकोट की पहुँच यहाँ तक सीमित नहीं मानी जाती।

6️⃣ सोरपट्टी – गोर्खा किला और नियंत्रण

1790–1815 के बीच सोरपट्टी क्षेत्र में गोर्खा शासकों का प्रत्यक्ष नियंत्रण था। यहाँ गोरखा सुबेदारों द्वारा प्रशासन, न्याय और कर प्रणाली संचालित की जाती थी। Askot या Serakot जैसे स्थानीय शासकों की भूमिका केवल नाममात्र की रह गई थी।

7️⃣ सोरपट्टी के 'कोट' – या केवल पहाड़?

क्षेत्र में ‘भटकोट’, ‘थरकोट’ जैसे नाम मौजूद हैं, परंतु ये सम्भवत: भौगोलिक या सांस्कृतिक पहचान हैं, न कि वास्तविक किले। इन स्थलों का सीधा संबंध किसी ऐतिहासिक शासक या राजकीय कोट से प्रमाणित नहीं है।

8️⃣ अस्सी कोट – इतिहास या परंपरा?

'अस्सी कोट' नाम से Askot क्षेत्र में 80 छोटे किलों का होना बताया जाता है, जो राजा की रणनीतिक दृष्टि को दर्शाते हैं। इनमें से लखनपुर कोट को छोड़कर किसी अन्य का ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं है, बाकी की जानकारी लोककथाओं में सीमित है।

9️⃣ लखनपुर कोट – एकमात्र जीवित गढ़

Askot के समीप यह वह स्थल है जहाँ पत्थर की दीवारें, ढाँचागत अवशेष और संरचना आज भी मौजूद हैं। माना जाता है कि यह अस्कोट राजाओं का औपचारिक प्रशासनिक केंद्र था।

🔟 गोरखा आक्रमण – सत्ता की पुनर्रचना

1790 में गोरखा सेनाओं ने काली नदी पार कर पूरे सीमांत कुमाऊं में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। Askot, Serakot, और Sorpatti सभी गोर्खा अधीनता में आ गए। 1815–16 में सुगौली संधि के बाद यह क्षेत्र ब्रिटिश साम्राज्य का भाग बना।

✨ निष्कर्ष – पहाड़ों की राजनीति, आस्था और विरासत

क्षेत्रभूमिका
छिपलाकोटदेवस्थान, Askot का अप्रत्यक्ष नियंत्रण
सेराकोटधार्मिक केंद्र, सीमित राजनीतिक प्रभाव
अस्कोटराजकीय और रणनीतिक शक्ति केंद्र
सोरपट्टीगोरखा शासित क्षेत्र, स्वतंत्रता नहीं

📣 पाठकों से आग्रह:

यदि आप इन क्षेत्रों का नक्शा, अन्य कोटों की जानकारी, या दस्तावेज़ों पर आधारित विश्लेषण देखना चाहते हैं – नीचे कमेंट करें या संपर्क करें।

"इतिहास को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है कि हम उसे दोहराएं नहीं, बल्कि समझें।"

जय उत्तराखंड! 🌄


📌 Disclaimer:

यह लेख ऐतिहासिक तथ्यों, लोककथाओं और प्रचलित शोधों पर आधारित है। कुछ नाम और घटनाएँ स्थानीय स्रोतों से ली गई हैं जिनकी ऐतिहासिक पुष्टि आंशिक रूप से ही उपलब्ध है। पाठक कृपया संदिग्ध तथ्यों को अपने विवेक से क्रॉस-जाँच करें।

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