होमस्टे से पहाड़ की नई उम्मीद: वापस लौट रहे युवा
दस साल पहले Palayan ने कनसार गाँव को लगभग खाली कर दिया था। आज वहीं 14 होमस्टे खुल चुके हैं। दीवार पर लिखा है—“Welcome Home”। ये शब्द न केवल पर्यटकों के लिए हैं, बल्कि उन युवाओं के लिए भी जो शहर छोड़कर वापस आए हैं।
एक माँ का फोन और बेटे का फैसला
अनिल रावत दिल्ली में बैंक में नौकरी करते थे। फिर एक रात माँ का फोन आया—“बेटा, घर में ताला लगा है।” अगले हफ़्ते अनिल ने इस्तीफ़ा दिया और होमस्टे शुरू किया। पहले साल 24 मेहमान आए, दूसरे में 120।
“मैंने सोचा, अगर मैं नहीं लौटा तो गाँव खत्म हो जाएगा।”
— अनिल रावत, 29 वर्ष
होमस्टे का तीन-सूत्रीय मॉडल
- स्थानीय संस्कृति: लकड़ी के घर, गढ़वाली भोजन, लोक-गीत रात में।
- डिजिटल मार्केटिंग: Instagram और Booking.com पर प्रोफ़ाइल, 24×7 वाई-फ़ाई।
- महिला उद्यम: 60% होमस्टे की मालकिन महिलाएँ हैं, जो women left behind की कहानी बदल रही हैं।
संख्याएँ बोलती हैं
- 2023 में उत्तराखंड में 3,400+ पंजीकृत होमस्टे
- 14,000+ युवाओं को रोज़गार मिला
- गाँवों की औसत आय में 42% वृद्धि
“पहले बेटियाँ पढ़कर नौकरी करती थीं, अब वही बेटियाँ घर में नौकरी देती हैं।”
— मीनाक्षी भंडारी, 34 वर्ष
चुनौतियाँ और समाधान
सड़कें संकरी हैं, बिजली कटती है। पर समाधान हैं—solar micro-grid, वॉटर-हार्वेस्टिंग और पलायन रोकने की नीतियाँ।
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अब वक्त है, पहाड़ को वापस बुलाने का।
अब वक्त है, पहाड़ को वापस बुलाने का।
— From the hills editorial team