Nanda Devi Raj Jat Yatra: आस्था, लोककथा और पहाड़ की सबसे लंबी यात्रा
Uttarakhand की सबसे पवित्र और रहस्यमयी यात्रा की कहानी
“जहाँ धरती स्वर्ग से मिलती है, वहीं से शुरू होती है माँ नंदा की विदाई की यात्रा।”
📌 प्रस्तावना
हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड केवल प्राकृतिक सौंदर्य का नहीं, बल्कि आस्था और अध्यात्म का भी केंद्र है। यहाँ हर पहाड़, हर नदी और हर गाँव में कोई न कोई देवी-देवता वास करता है। इन्हीं में से एक हैं माँ नंदा देवी – गढ़वाल और कुमाऊँ दोनों की कुलदेवी, जिन्हें लोग अपनी बेटी मानते हैं। और जब यही बेटी हर 12 साल में अपने मायके से विदा होकर कैलाश पति शिव के पास जाती है, तो यह विदाई न केवल धार्मिक अनुष्ठान बनती है, बल्कि एक लोक-संस्कृति का महाकुंभ, जिसे "नंदा देवी राज जात यात्रा" कहा जाता है।
🏔️ यात्रा का भौगोलिक और आध्यात्मिक महत्त्व
नंदा देवी राज जात यात्रा भारत की सबसे लंबी पैदल तीर्थयात्राओं में से एक है। यह यात्रा लगभग 280 किमी लंबी है और 19 दिनों तक चलती है। इसका मार्ग चमोली जिले के नौटी गाँव से शुरू होकर होमकुंड (Homkund) तक जाता है, जो 4,000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
🗺️ प्रमुख पड़ाव:
पड़ाव | ऊँचाई (मी.) | विशेषता |
---|---|---|
नौटी गाँव | 1,300 | यात्रा का आरंभ स्थल |
बेडनी बुग्याल | 3,354 | हरे-भरे घास के मैदान, प्राकृतिक सौंदर्य |
रूपकुंड | 5,029 | रहस्यमयी कंकालों वाली झील |
होमकुंड | 4,000+ | यात्रा का अंतिम पड़ाव, जहाँ बकरा छोड़ा जाता है |
📖 लोककथा: माँ नंदा की विदाई की कहानी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नंदा देवी भगवान शिव की पत्नी पार्वती का ही रूप हैं। एक बार वे अपने मायके (नौटी गाँव) आईं। लेकिन 12 वर्षों तक वापस नहीं गईं। तब गाँव वालों ने उन्हें भक्तिपूर्वक पति के घर (कैलाश) भेजने का निश्चय किया। यही यात्रा "राज जात" कहलाई।
इस यात्रा में चौसिंग्या खड़ू (चार सींगों वाला दुर्लभ बकरा) माँ की दोली का रथ बनता है। माना जाता है कि यह बकरा स्वयं मार्ग चुनता है और होमकुंड पहुँचकर हिमालय में विलीन हो जाता है।
🎭 सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू
🔸 गढ़वाल और कुमाऊँ की एकता
यह यात्रा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। गढ़वाल और कुमाऊँ – दोनों क्षेत्रों के लोग मिलकर इस यात्रा को सफल बनाते हैं। लोकगीत, नृत्य, और पारंपरिक व्यंजन इसे एक जीवंत उत्सव बनाते हैं।
🔸 भावनात्मक विदाई
जब देवी की दोली गाँव से निकलती है, तो लोगों की आँखों में आँसू होते हैं। यह बेटी की विदाई जैसा होता है। गाँव की महिलाएं "नंदा लोक गीत" गाकर उनकी यात्रा को विदाई देती हैं:
"नंदा तेरी यात्रा, लंबी है घणी...
पति के द्वार जाती, ससुराल की री..."
🧘♂️ यात्रा की चुनौतियाँ
चुनौती | विवरण |
---|---|
अत्यधिक ऊँचाई | 13,000 फीट तक चढ़ाई, ऑक्सीजन की कमी |
मौसम की मार | अचानक बर्फबारी, तेज हवाएँ |
दुर्गम मार्ग | संकरी पगडंडियाँ, हिमनद, पत्थरों वाले रास्ते |
शारीरिक कठिनाई | 19 दिनों तक पैदल चलना, कई बार बिना जूते |
🌿 यात्रा का रहस्यमय पक्ष
🔸 रूपकुंड का रहस्य
यात्रा के दौरान रूपकुंड झील आती है, जहाँ सैकड़ों कंकाल मिले हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ये 9वीं शताब्दी के तीर्थयात्री थे, जो अचानक आई भयंकर ओलावृष्टि में फँस गए।
🔸 चौसिंग्या खड़ू का अंत
जब यात्रा होमकुंड पहुँचती है, तो चार सींगों वाले बकरे को स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है। मान्यता है कि यह बकरा कैलाश पहुँचकर शिव का साथ बन जाता है। पीछे मुड़कर कोई नहीं देखता – यह अंतिम विदाई का संकेत है।
📅 अगली यात्रा: 2025
अगली "बड़ी जात" 2025 में होगी, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भाग लेंगे। यह यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हिमालय के लोगों की आस्था, साहस और संस्कृति का प्रतीक है।
🔚 निष्कर्ष
नंदा देवी राज जात यात्रा केवल एक तीर्थयात्रा नहीं, बल्कि एक जीवंत लोककथा है – जहाँ पहाड़ गवाह हैं, बादल गीत गाते हैं, और हवाएँ देवी की विदाई का शोक मनाती हैं। यह यात्रा आस्था की पराकाष्ठा, संस्कृति का संगम, और प्रकृति का साक्षात्कार है।
"जिसने इस यात्रा को किया, उसने न केवल पहाड़ चढ़े, बल्कि अपने भीतर के भय को भी पार किया।"
🙏 माँ नंदा की जय!
अगर आप इस यात्रा में भाग लेने की सोच रहे हैं, तो शारीरिक तैयारी के साथ-साथ मन को भी तैयार करें – क्योंकि यह यात्रा केवल पैरों से नहीं, भक्ति से तय होती है।